फेसबुक खोलता हूँ तो मुझे मेरे दोस्त नज़र नही आते...
जिनके साथ बचपन और जवानी बीती ,वह यार नज़र नहीं आते.
कोई अज़ान पर बहस करता है....
तो कोई '84 के दंगो की बात करता है....
कोई गौमाता के लिए झगड़ता है....
तो कोई बीजेपी  ,कांग्रेस और आप के लिए पोस्ट्स करता है....
फेसबुक खोलता  हूँ तो मुझे हिंदुस्तानी नज़र
नहीं आते....
मुझे यहां मेरे दोस्त नज़र नहीं आते.....
वह दोस्त जो मुझसे मज़ाक करते थे.....
मेरी पोस्ट्स पर कमेंट और छेड़छाड़ खुलेआम करते थे....
कोई सांग पोस्ट करता था तो कोई स्कूल या कॉलेज का दोस्त काफी दिन से न मिलने पर शिकवा करता था ....
अब तो बस मज़हब के नाम पर लड़ने वाले इंसान      नज़र आते है....
मेरी इक आवाज़ पर मर मिटने वाले दोस्त नज़र नहीं आते .
#punitspoetry

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